✍︎भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार☟︎︎︎

✍︎ भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार☟︎︎︎

मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44वें संविधान संशोधन के द्वारा संपत्ति का अधिकार को मौलिक अधिकार की सूची से  हटाकर इसे संविधान के अनुच्छेद 300 (a) के अन्तगर्त क़ानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है.

1. इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है. 
भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकारों से जुड़े तथ्‍य इस प्रकार हैं
2. इसका वर्णन संविधान के भाग-3 में (अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35) है. 
3. 
इसमें संशोधन हो सकता है और राष्ट्रीय आपात के दौरान (अनुच्छेद 352) जीवन एवं व्यकितिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है. 
4. 
मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44वें संविधान संशोधन (1979 ई०) के द्वारा संपत्ति का अधिकार (अनुच्छेद 31 से अनुच्छेद 19f) को मौलिक अधिकार की सूची से  हटाकर इसे संविधान के अनुच्छेद 300 (a) के अन्तगर्त क़ानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है.


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भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित मूल अधिकार प्राप्त हैं:
1.
 समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18)
2.
 स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22)
3.
 शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24)
4. 
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
5. 
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30)
6. 
संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32)

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1. समता या समानता का अधिकार:

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☞︎︎︎विधि  भेदभाव अवसर  ki अस्पृश्य उपाधि hai .


अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समता- इसका अर्थ यह है कि राज्य सही व्यक्तियों के लिए एक समान कानून बनाएगा तथा उन पर एक समान ढंग से उन्‍हें लागू करेगा.

अनुच्छेद 15: धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेद- राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग एवं जन्म-स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी भी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जाएगा. 

अनुच्छेद 16: लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता- राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी. अपवाद- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग. 

अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का अंत- अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए इससे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है.

अनुच्छेद 18: उपाधियों का अंत- सेना या विधा संबंधी सम्मान के सिवाए अन्य कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी. भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश से बिना  राष्ट्रपति की आज्ञा के कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है.

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2. स्वतंत्रता का अधिकार:

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☞︎︎︎ स्वतंत्र  सजा  जीवन  बंदी  ( hint-- स्वतन्त्र सजा है और जीवन बंदी हैैं)

अनुच्छेद 19- मूल संविधान में 7 तरह की स्वतन्त्रता उल्लेख था, अब सिर्फ 6 हैं: 
19 (a) बोलने की स्वतंत्रता
19 (b) शांतिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता. 
19 (c) संघ बनाने की स्वतंत्रता. 
19 (d) देश के किसी भी क्षेत्र में आवागमन की स्वतंत्रता. 
19 (e) देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता. (अपवाद जम्मू-कश्मीर) 
19 (f) संपत्ति का अधिकार. 
19 (g) कोई भी व्यापार एवं जीविका चलाने की स्वतंत्रता. 
नोट: प्रेस की स्वतंत्रता का वर्णन अनुच्छेद 19 (a) में ही है.

अनुच्छेद 20- अपराधों के लिए दोष-सिद्धि ( सजा  का प्रावधान) ) के संबंध में संरक्षण- इसके तहत तीन प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन है: 
(a) किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार सजा मिलेगी. 
(b) अपराध करने के समय जो कानून है इसी के तहत सजा मिलेगी न कि पहले और और बाद में बनने वाले कानून के तहत.
(c) किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिय बाध्य नहीं किया जाएगा.

अनुच्छेद 21- प्राण एवं दैहिक (जीवन जीने का  अधिकार) स्वतन्त्रता का सरंक्षण: किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रकिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है.
अनुच्छेद 21(क) राज्य 6 से 14 वर्ष के आयु के समस्त बच्चों को ऐसे ढंग से जैसा कि राज्य, विधि द्वारा अवधारित करें, निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराएगा. ( 86वां संशोधन 2002 के द्वारा).

अनुच्छेद 22- कुछ दशाओं में ( बन्दी )गिरफ़्तारी और निरोध में संरक्षण: अगर किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिया गया हो, तो उसे तीन प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है: 
(1) हिरासत में लेने का कारण बताना होगा. 
(2) 24 घंटे के अंदर (आने जाने के समय को छोड़कर) उसे दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया जाएगा. 
(3) उसे अपने पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा. 
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3. शोषण के विरुद्ध अधिकार 

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☞︎︎︎ बलातश्रम  का निषेध 

अनुच्छेद 23: मानव के दुर्व्यापार और बलात श्रम का प्रतिषेध: इसके द्वारा किसी व्यक्ति की खरीद-बिक्री, बेगारी तथा इसी प्रकार का अन्य जबरदस्ती लिया हुआ श्रम निषिद्ध ठहराया गया है, जिसका उल्लंघन विधि के अनुसार दंडनीय अपराध है.

नोट: जरूरत पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा करने के लिए बाध्य किया जा सकता है.

अनुच्छेद 24: बालकों के नियोजन का (निषेध )प्रतिषेध: 14 वर्ष से कम आयु वाले किसी बच्चे को कारखानों, खानों या अन्य किसी जोखिम भरे काम पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है.

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4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार-

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☞︎︎︎ अन्तः  का प्रबन्ध  कर  धार्मिक शिक्षा  मत दे

अनुच्छेद 25: अंत कारण  की और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता: कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है.

अनुच्छेद 26: धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता: व्यक्ति को अपने धर्म के लिए संथाओं की स्थापना व पोषण करने, विधि-सम्मत सम्पत्ति के अर्जन, स्वामित्व व प्रशासन का अधिकार है.

अनुच्छेद 27: राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है, जिसकी आय किसी विशेष धर्म अथवा धार्मिक संप्रदाय की उन्नति या पोषण में व्यय करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दी गई है.

अनुच्छेद 28: राज्य विधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में धार्मिक शिक्षा  नही दी जाएगी. ऐसे शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्मोपदेश को बलात सुनने हेतु बाध्य नहीं कर सकते.

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5. संस्कृति एवं शिक्षा संबंधित अधिकार: 

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☞︎︎︎ अनुच्छेद के नाम के अनुरूप।


अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यक हितों का संरक्षण कोई अल्पसंख्यक वर्ग अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है और केवल भाषा, जाति, धर्म और संस्कृति के आधार पर उसे किसी भी सरकारी शैक्षिक संस्था में प्रवेश से नहीं रोका जाएगा.

अनुच्छेद 30: शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार: कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी पसंद की शैक्षणिक संस्था चला सकता है और सरकार उसे अनुदान देने में किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करेगी.

6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार: 


'संवैधानिक उपचारों का अधिकार' को डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान की आत्मा कहा है. 


अनुच्छेद 32: इसके तहत मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्यवाहियों द्वारा उच्चतम न्यायालय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है. इस सन्दर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को पांच तरह के रिट निकालने की शक्ति प्रदान की गई है जो निम्न हैं: 
(a) बंदी प्रत्यक्षीकरण 
(b) परमादेश 
(c) प्रतिषेध लेख 
(d) उत्प्रेषण 
(e) अधिकार पृच्छा लेख 

👉 • उपराष्ट्रपति से सम्बंधित अनुच्छेद (TRICK) •

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